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रोग की उत्पत्ति :-अनियमित भोजन, बाजारों के तैलीय भोजन, फास्ट फूट, कम पानी सेवन के चलते बात, पित, कफ की विकृति के चलते इस रोग का पदार्पण होता है! कुछ मामले वंशानुगत तथा अत्यधिक एन्टीबायोटिक तथा दर्दनिवारक दवाओं के सेवन से भी होता है!
ग्रहणी रोग का समय पर उचित इलाज नहीं करने से, पुराना होने पर यह कई रोगों को जन्म दे सकती हैं तथा जानलेवा भी बन सकती है!
जैसे:-रोग प्रतिरोध, जोड़ो मे दर्द, आर्थ्राइटिस, गाठिया, डायबिटीज, थाइराइड, यहां तक कि उच्च रक्तचाप तथा गुर्दा रोग भी लग सकता है!
वात ग्रहणी :- त्वचा का रूक्ष होना, गले तथा मुख का सूखना, कभी कब्ज कभी दस्त होना!
पितज ग्रहणी:- प्यास, सीने मे जलन, गर्मी, चिड़चिड़ापन, बुखार, मल मे दुर्गंध!
कुछ ग्रहणी:- वमन, अपच, लार की अधिकता, दुर्गधय़ुक्त डकार, छाती व पेट मे भारीपन!
आमा ग्रहणी :-आंतों मे गुड़गुड़ाहट, आलस्य, दुर्बलता, कभी पतला, कभी गाजा, कभी सफेद मल, कटिप्रदेश मे वेदना, कभी-कभी 10-15 दिनों तक मल का न निकलना, यह आमवाती ग्रहणी ब मुश्किल ठीक होती है!
धन्वन्तरि मत:-बालकों में ग्रहणी साध्य होता है,
युवावस्था मे कृच्छसाध्य होता है!
वृद्धों मे यह रोग असाध्य होता है!
रोगी को देखने पर कुछ मिश्रित जटिलताएं भी देखने को मिलती हैं!
ये कुछ साधारण लक्षण हैं बिना रोगी देखे अनुमान लगाना कठिन होता है!
इस रोग को हल्के मे नहीं लिया जाना चाहिए, अक्सर लोग अपच, या एसिडिटी समझ बाजारू चूरन चटनी का प्रयोग करते रहते है तथा दर्द मे बिना सोचो समझे पेन किलर खाते हैं यह गलत है!
यह बीमारी जानलेवा भी हो सकती हैं, विकट परिस्थितियों में कई बार लोगो को शल्यक्रिया का भी सहारा लेना पड़ता है!
साधारण ग्रहणी रोग के लिए कुछ दवाओं का विवरण दे रहा हूँ जिसका प्रयोग उचित चिकित्सक के देख रेख में ही करें!
चित्रकादि वटी 2*2
महाशंख वटी 2*2
ग्रहणीकपाट रस
ग्रहणी गजकेशरी रस
अग्निसूनू रस
पंचामृत पर्पट रस
कनक सुन्दर रस
द्राक्षासव
शुष्ठय़ादि क्वाथ
मट्ठा तथा छाछ का सेवन अवश्य करे!
दवाएं बैधनाथ फार्मेसी की उचित होती हैं!
यह पोस्ट जनहित मे जानकारी के लिए लिखी है कोई भी दवा का प्रयोग उचित चिकित्सक के देखरेख में ही करें!
किसी भी तरह की जिम्मेदारी लिखनेवाले की नही होगी!
आयुर्वेद अपनाए निरोगी जीवन जिएं!
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Dr. Arun Mishra
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